आजमगढ. उत्तर प्रदेश की राजनीति में सादगी का पर्याय माने जाने वाले सपा विधायक आलमबदी मोदी लहर के बावजूद आजमगढ़ की निजामाबाद सीट से चुनाव जीत गए हैं। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वि बसपा के चंद्रदेव राम को 18,529 वोटों से हरा दिया। आलमबदी को 67,274 वोट मिले जबकि चन्द्रदेव राम को 48,745 वोट।
अपनी सादगी के लिये मशहूर तीन बार से विधायक आलमबदी को इस बात का कभी कोई अभिमान नहीं रहा। वह टिनशेड के नीचे रहते हैं। अपनी फर्नीचर की पुरानी दुकान पर बैठते हैं। राजनीति में आने से पहले वह बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे। इन्होंने नौकरी छोड़कर सिविल लाइन में एक वेल्डिंग की दुकान खोल ली और वहीं से विधायक बनने की कहानी शुरू हुई। पहली बार 1996 में समाजवादी पार्टी से विधायक बने। 2002 में भी यह विधायक बने पर 2007 में इन्हें दूसरे नंबर से संतोष करना पड़ा। पर 2012 में इन्होंने फिर विजय पायी और अब 2017 की मोदी लहर को भी परास्त कर दिया।
बड़ी बात यह कही जाती है आलमबदी के बारे में कि यह कभी टिकट मांगने नहीं जाते। इन्हें पहले मुलायम सिंह यादव खुद टिकट देते थे और जब सपा की कमान अखिलेश यादव के हाथों में आयी तो उन्होंने भी बिना मांगे ही टिकट दिया, क्योंकि इनकी सादगी को सपा में जीत की जमानत समझा जाता है। अब तक इन पर किसी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लग सका है। जानने वाले बताते हैं कि अब जाकर उन्होंने बोलेरो लिया है। उनके पास कार नहीं थी। वह पैदल की प्रचार पर निकल जाते। बाकी रोजाना काकाम भी उनका पैदल ही चलता। इनका एक और अंदाज राजनीति और जनता में खूब पसंद किया जाता है। यह विरोधी या फिर पार्टी की परवाह किये बिना मानवीय संवेदना निभाते हैं। मऊ जिले
के भाजपा विधायक की हत्या हो गई तो वह श्रद्वांजलि देने खुद मंच पर गए थे। उनका तर्क था कि दिवंगत विधायक थे विधायक होने के नाते वो मेरे भाई हुए।
कहा जाता है कि आलमबदी की ईमानदारी से इनकी विधायकनिधि से काम करने वाले ठेकेदार भी घबराते हैं। अपने विधानसभा क्षेत्र में बनने वाली सड़क यह खुद बैठकर बनवाते हैं। चुनाव जीतने के बाद जब उन्हें दो गनर मिले तो उन्होंने एक को लौटा दिया। तर्क दिया कि एक आदमी के लिये दो गनर की क्या जरूरत। उनकी इस सादगी पर जनता और मोहित हुई।
Saturday, 11 March 2017
आजमगढ. उत्तर प्रदेश की राजनीति में सादगी का पर्याय
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